- मेलिट्टिन करता है एचआईवी कोशिकाओं पर वार।
- सामान्य कोशिकायें रहती हैं इससे सुरक्षित।
- मधुमक्खी के डंक में पाया जाता है ये तत्व।
- वैज्ञानिक रिसर्च में निकलकर आया है यह तथ्य।
मधुमक्खी के डंक में पाये जाने वाले विषैले पदार्थों से ह्यूमन इम्यूनोडेफिशियंसी वायरस यानी एचआईवी को खत्म किया जा सकता है। कमाल की बात यह है कि इससे आसपास की कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यह बात जनवरी में हुए एक शोध में साबित हुई है। सेंट लुइस स्थित वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसन ने यह शोध किया है। मेलिट्टिन नामक तत्त्व मधुमक्खी के डंक का मुख्य तत्व होता है। मेलिट्टिन ही एचआईवी वायरस के बढ़ने की क्षमता को नष्ट करता है, वहीं इसके आणविक नैनोकण शरीर के सामान्य कणों को नुकसान पहुंचने से बचाते हैं। इसके अलावा मधुमक्खी के डंक को ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट करने में भी उपयोगी माना जाता है।
मेलिट्टिन करे मदद
मधुमक्खी के डंक में मौजूद मेलिट्टिन एक विषैला पदार्थ है जो एचआईवी कोशिकाओं और अन्य वायरस की परत में छिद्र कर देते हैं। मेलिट्टिन की अधिक मात्रा काफी नुकसान कर सकती है। इसके साथ ही इस शोधपत्र के वरिष्ठ लेखक सैम्युअल ए. विकलाइन ने मेलिट्टिन से लैस नैनोकणों को ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट करने में भी उपयोगी माना है।
छोटी होती हैं एचआईवी कोशिकायें
नये शोध में यह बात साबित हुई है कि मेलिट्टिन से लैस ये नैनोआणविक कण सामान्य कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचाते। ऐसा नैनोकणों की सतह से जुड़े हुड के कारण होता है। जब ये नैनोकण सामान्य कणों, जिनका आकार बड़ा होता है, के संपर्क में आते हैं, तो वे कण स्वत: ही पीछे की ओर उछल जाते हैं। दूसरी ओर एचआईवी की कोशिकायें आकार में नैनोकणों से बहुत छोटी होती हैं, इसलिये वे आसानी से बम्पर में फिट हो जाती हैं, और नैनोकणों के संपर्क में आ जाती है, जहां मधुमक्खी का विषैला पदार्थ मौजूद होता है।
प्रतिकृति नीति का असर
ज्यादातर एंटी-एचआईवी दवाओं में वायरस को फैलने से रोकने की पद्धति पर काम करती हैं। इस विरोध प्रतिकृति नीति में वायरस को रोकने की क्षमता नहीं होती। और वायरस के कई रूपों ने दवाओं का तोड़ निकाल लिया है। अब वे दवाओं के बावजूद अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं।
बचाव का तरीका
इस शोध के आधार पर ऐसे इलाकों में जहां, एचआईवी बहुत सक्रिय है, एक नया यौनिक जैल इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे बचाव उपाय के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से शुरुआती संक्रमण से बचा जा सकता है और एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है। मधुमक्खी के डंक से एचआईवी का इलाज करने का यह शोध कुछ दिन पहले एंटीवायरल थेरेपी जनरल में छपा है।
बहस है जरूरी
दुनिया भर में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग एचआईवी/एड्स से पीड़ित हैं। और इनमें तीस लाख से अधिक की उम्र 15 वर्ष से कम है। हर दिन हजारों लोग एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार बन रहे हैं। इसके साथ ही एचआईवी और एड्स के इर्द-गिर्द चल रही बहस पर भी ध्यान देना जरूरी है। शोध कहते हैं कि एचआईवी की मौजूदगी साबित करने वाला कोई वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। एड्स को लेकर भी दुनिया के कई देशों में अलग-अलग राय है। एक देश में कहा जाता है कि एड्स का इलाज संभव है, वहीं कोई दूसरा मुल्क इससे इनकार करता है। एक बात पर ज्यादातर देश एकराय हैं कि इसमें शरीर की श्वेत रक्त कोशिकाओं का स्तर काफी कम हो जाता है। इस कारण व्यक्ति किसी भी बीमारी का आसानी से शिकार हो जाता है। एड्स पर शोध करने वाले मार्क गैबरिश कॉन्लन का कहना है कि क्योंकि इसके साथ काफी भावनात्मक पहलु जुड़े हुए हैं, इसलिए बहुत कम लोग एड्स को तर्कसंगत नजरिये से देख पाते हैं।
भले ही इस शोध पर बहुत ज्यादा विमर्श न हुआ हो, लेकिन यह अपने आप में बड़ी खबर है। दुनिया भर के करोड़ों लोगों को इससे फायदा होगा। एचआईवी जिसे अब तक लाइलाज माना जाता था के इलाज की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है।



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