एक सर्वेक्षण के मुताबिक इससे बच्चों में हिंसक बनने की प्रवृति बढ़ जाती है। उटाह ब्रघिम यंग यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस शोध में यह बात सामने आई है कि टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली गाली-गलौच और हिंसक वीडियो गेम्स में होने वाली मारधाड़ बच्चों के नाजुक मन पर बेहद नकारात्मक प्रभाव डालती है। इन वीडियो गेम्स की लोकप्रियता और जरूरत से ज्यादा इनका इस्तेमाल बच्चों में आक्रामक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। साथ ही उनके नैतिक आचरण में भी गिरावट आती है।बच्चों को मारधाड़ और सुपरहीरो वाली वीडियो गेम्स काफी पसंद आती हैं। अक्सर हम इसे बचपना मानकर छोड़ देते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ऐसा करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इससे कुछ समय के लिए भले ही बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आ जाए, लेकिन दीर्घकालिक तौर पर यह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
260 बच्चों के आचरण पर किए गए परीक्षण के आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि वे बच्चे जो गाली-गलौच और अभद्र भाषा के संपर्क में ज्यादा रहते हैं, वह अभद्र और गलत व्यवहार करने में भी आगे रहते हैं। उनका यही अभद्र व्यवहार आगे चलकर आक्रामक स्वभाव में परिवर्तित हो जाता है। यही नहीं वे बिना कुछ सोचे-समझे दूसरों के साथ मारपीट तक शुरू कर देते हैं।
इसके बाद हिंसक दृश्यों और व्यक्ति के स्वभाव के बीच के संबंधों का भी पता चलता है। यानी जो कुछ बच्चे देखते और सुनते हैं उनका स्वभाव उसी के अनुसार ढ़लता चला जाता है। बच्चों का मन चिकनी मिट्टी की तरह होता है और उस पर जो कुछ अंकित किया जाए वह समय की भट्टी में तपकर जीवनपर्यंत उसके अंर्तमन में बैठा रहता है।
अक्सर बच्चे उस आभासी किरदार की जीवनशैली को ही आदर्श मानने लगते हैं। अगर उनका हीरो अभद्र भाषा का प्रयोग करता है तो बच्चे उसे मॉडर्न स्टाइल मानकर अपने दोस्तों के साथ उसी भाषा का प्रयोग करने लगते हैं। उनका यही स्वभाव आगे चलकर उनके भीतर उग्रता का प्रचार करता है।
ऐसे हालातों में अभिभावकों का कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करें। बच्चों को ऐसे खेलों और कार्यक्रमों से दूर रखा जाए तो उनके दिमाग पर नकारात्मक व हिंसक प्रभाव छोड़ें। जो उनके मस्तिष्क को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। बच्चों को एक उज्जवल भविष्य देने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।
0 comments:
Post a Comment