और जब वो पल आया जब हमारे शरीर पर केवल एक ही कपडा बचा था, मेरी हिम्मत जवाब दे गयी। मैं सेक्स करना चाहती लेकिन मुझे डर सा लग रहा था। वो भी रुक गया, और उसने कहा की जब तक मुझे सहज महसूस न हो वो इंतज़ार करने के लिए तैयार है। उसने मुझे सामान्य महसूस कराया और हिम्मत जुटा कर मैंने किसिंग का दूसरा दौर शुरू किया और उसे आश्वस्त किया की मैं बिलकुल सहज हूँ।
इस से हम दोनों फिर से थोड़ा सामान्य हुए और फिर से अपने इस मिलन की जद्दोजहद में जुट गए। मैं चाहती थी की वो मेरे अंदर प्रवेश करे। अचानक चीज़ें तेजी से होने लगी। मैं कंडोम पहनने में उसकी मदद कर रही थी और जैसे ही हमें लगा की वो पल आ गया है, अचानक वो मेरी योनि ही नहीं ढून्ढ पा रहा था! क्या घबराहट के कारण मेरा शरीर सिकुड़ गया था या फिर शायद इसलिए की हम दोनों इस मामले में अनाड़ी थे। पता नहीं क्या था!
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